बड़े अरमानों से खोला था रेस्टोरेंट कि जल्दी ही अमीर हो जाएंगे, 20 ही दिन में ऐसा नशा हिरण हुआ कि यह करना पड़ा
नई दिल्ली: आजकल मीडिया में कारोबारियों के सक्सेस स्टोरी की काफी खबर आती रहती है। इसमें बताया जाता है कि महज कुछ हजार के निवेश से आज करोड़ों का कारोबार खड़ा कर दिया। इसी तरह की कहानी से प्रेरित होकर बेंगलुरु के एक नौजवान ने रेस्टोरेंट खोला। उन्हें लगता था कि वे बढ़िया खाना परोसेंगे, ग्राहक खुश होंगे और उनका नाम हो जाएगा। लेकिन महज 20 दिन में ही उसे ऐसी सबक मिली कि रेस्टोरेंट का शटर डाउन करना पड़ा।
युवाओं का सपना
कई युवाओं का सपना होता है कि वह कम उम्र में ही बढ़िया कारोबार जमाएंगे। इन दिनों युवाओं के बीच रेस्टोरेंट या खाने-पीने का बिजनेस खोलने का भी क्रेज है। वह सोचते हैं कि इससे वह लोकप्रिय व्यक्ति भी हो जाएगा। लेकिन इस सपने के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी होती है, क्योंकि खाने का बिजनेस चलाना बहुत मुश्किल काम है। हाल ही में एक 22 साल के लड़के ने Reddit पर अपनी कहानी बताई कि कैसे उसका सपनों का रेस्टोरेंट, जिसे बनाने में महीनों की प्लानिंग और बचत लगी थी, खुलने के सिर्फ एक महीने के अंदर ही बंद हो गया।
रेस्टोरेंट खोलने में काफी हुआ निवेश
इस नौजवान लड़के की हमेशा से ही एक रेस्टोरेंट या कैफे खोलने की इच्छा थी। उसने छह महीने तक अच्छी जगह की तलाश की और आखिरकार उसे एक ऐसी जगह मिली जो कॉलेजों और हॉस्टलों के पास, यानी छात्रों के इलाके में थी। वहां लोगों की भीड़ बहुत थी, लेकिन किराया भी बहुत ज्यादा था, ₹30,000 हर महीने एक छोटी सी जगह के लिए। उसने सोचा कि छात्रों की भीड़ से यह किराया निकल जाएगा और उसने यह जगह ले ली। इसके बाद दो महीने तैयारी में लगे। बर्तन खरीदे, किचन सेट किया, बड़े-बड़े होर्डिंग छपवाए और सब कुछ तैयार किया। उसका घर वहां से 15 किमी दूर था, इसलिए उसने और उसके भाई ने पास में ही एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया ताकि रोज़-रोज़ की लंबी यात्रा से बचा जा सके। आखिरकार, मई 2025 में रेस्टोरेंट खुल गया।
जल्दी ही समझ में आ गया
उसके शुरुआती कुछ दिन उम्मीद जगाने वाले थे। रोज़ाना ₹2,000 से ₹2,500 की बिक्री हो रही थी। लेकिन जल्द ही हकीकत सामने आ गई। सड़क के दूसरी तरफ एक बहुत पुराना और मशहूर रेस्टोरेंट था, जहां दिन भर भीड़ लगी रहती थी और रोज़ ₹40,000 से ₹45,000 की कमाई होती थी। उस लड़के ने सोचा था कि वहां से कुछ ग्राहक उसके रेस्टोरेंट में भी आएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। छात्र उसके थोड़े बेहतर क्वालिटी वाले खाने की बजाय सस्ता और जल्दी मिलने वाला खाना पसंद कर रहे थे।
किराया निकालना हो गया मुश्किल
कुछ ही हफ्तों में उस पर तनाव हावी होने लगा। बिक्री इतनी कम हो गई कि मुनाफा तो दूर, रेस्टोरेंट का किराया भी मुश्किल से निकल रहा था। कच्चे माल और कर्मचारियों की सैलरी की तो बात ही छोड़ ही दीजिए। उसने दो कुक रखे थे और उनके लिए भी एक मकान किराए पर लिया था। सब जेब से जा रहा था।