PF पर मोटा ताला किसलिए? प्रॉविडेंट फंड से 75% पैसा ही निकाल सकेंगे, कितनी बढ़ेंगी इस फैसले से मुश्किलें
प्रॉविडेंट फंड (पीएफ) का पैसा अब पहले से थोड़ा ज्यादा आजाद होगा। अब आप खाते से 75% तक रकम निकाल सकेंगे, लेकिन 25% हिस्सा नौकरी के दौरान फंड चलाने वाले ईपीएफओ के पास रखना होगा। ईपीएफओ का कहना है कि इससे आपको ऊंची ब्याज दर का फायदा मिलेगा। रिटायरमेंट के लिए बचत बनी रहेगी।
12 महीने का इंतजार
कई लोगों का मानना है कि इससे निवेशक का अपना पैसा लंबे समय तक, शायद पूरी नौकरी के दौरान, फंसा रहेगा। पहले बेरोजगार होने पर दो महीने बाद पूरी पीएफ राशि निकालने की छूट थी। अब इसके लिए साल भर इंतजार करना होगा। पहले आप दो महीने बाद पेंशन की पूरी राशि निकाल सकते थे, अब इसके लिए 36 महीने तक इंतजार करना होगा। प्रॉविडेंट फंड में ही मच्योरिटी से पहले पैसा निकालने पर बंदिशें नहीं हैं। बैंक, पोस्ट ऑफिस, रिजर्व बैंक की स्कीमों का भी यही हाल है। इसे लॉक-इन कहा जाता है, जिसका अर्थ है एक निश्चित समयसीमा, जिसके भीतर निवेशक धनराशि नहीं निकाल सकते।
निवेशकों को फायदे के साथ नुकसान भी
लॉक-इन दोधारी तलवार है। निवेशकों के लिए इसमें फायदे हैं तो नुकसान भी हो सकता है। सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे निवेशक अनुशासित रहते हैं। हमारा मनोविज्ञान अक्सर तात्कालिक संतुष्टि की ओर झुकता है। यदि पैसा आसानी से उपलब्ध हो, तो लोग अक्सर छोटी-मोटी जरूरतों या बाजार में थोड़ी सी गिरावट देखकर ही निवेश निकाल लेते हैं। लॉक-इन सुनिश्चित करता है कि पैसा चक्रवृद्धि ब्याज की ताकत का पूरा लाभ उठा सके। लंबी अवधि में यह छोटी-छोटी बचत अपनी रफ्तार में चलती रहे तो बड़ी पूंजी में बदल जाती है।
क्या टैक्स में मिलेगी छूट?
लॉक-इन वाले कई साधनों पर इनकम टैक्स एक्ट की धारा 80C के तहत छूट मिलती है। सरकार यह लाभ इसलिए देती है ताकि लोग लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट करें। शेयर बाजार से जुड़ी इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम यानी ELSS में तीन साल की लॉक-इन अवधि है। यह निवेशकों को बाजार में गिरावट के दौरान घबराहट में बिक्री करने से रोकती है। जब बाजार नीचे जाता है, तो कई नए निवेशक डर के मारे कम दाम पर अपनी यूनिट बेच देते हैं और नुकसान उठाते हैं। लॉक-इन उन्हें इस गलती से बचाता है और उन्हें बाजार को सामान्य होने तक रुकने का समय देता है।
पीपीएफ जैसी स्कीमों का पैसा सरकार के पास जमा होता है। यह पूंजी सरकार को विकास और बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए स्थिर और सुरक्षित स्रोत मुहैया कराती है। इन स्कीमों में निवेश का आकर्षण टैक्स छूट के कारण है। न्यू टैक्स रेजीम ने उस जमाने को पीछे छोड़ दिया है, जब लोग सिर्फ टैक्स बचाने के लिए निवेश करते थे।
यहां निवेशकों को नुकसान
लॉक-इन का प्रावधान अपनी कुछ कमियों के कारण निवेशकों के लिए बड़ी समस्या भी बन सकता है। जिंदगी में इतनी सारी अनिश्चितताएं हैं। किसी भी समय मेडिकल इमरजेंसी आ सकती है। अचानक नौकरी छूट सकती है। महामारी आ सकती है। ऐसे में यदि निवेशक के पास लॉक-इन वाले साधन के अलावा कोई और साधन नहीं है तो मुश्किल होगी। जरूरत पूरी करने के लिए महंगे कर्ज लेने पड़ सकते हैं।
निवेश के लिए लक्ष्य में बदलाव
युवा निवेशकों के वित्तीय लक्ष्य समय के साथ बदल सकते हैं। उन्हें पैसा निकालने के मामले में लचीले रुख वाली स्कीमें चाहिए। कभी-कभी बाजार में बेहतर रिटर्न वाले नए निवेश के अवसर सामने आते हैं। चूंकि निवेशक का पैसा लॉक-इन है, वह इस पैसे को अधिक फायदेमंद साधन में ट्रांसफर नहीं कर पाता है। इससे उसे हाई रिटर्न कमाने के अवसर से से वंचित रहना पड़ता है।
युवाओं के लिए कैसे बाधा?
निवेश की दुनिया इन दिनों बड़ी तेजी से बदल रही है। युवा लंबी अवधि के लिए शेयरों को तेजी से अपना रहे हैं। उनके लिए प्रॉविडेंट फंड पर लॉक-इन बाधा की तरह सामने आया है। उन्हें लगता है कि प्रॉविडेंट फंड के मुकाबले शेयरों या म्यूचुअल फंड में ज्यादा रिटर्न हासिल किया जा सकता है। शायद यही वजह है कि सरकार को फंड का पैसा अनलॉक करने की ढील देनी पड़ी है।
निवेशकों को मिले छूट
पैसे का इस्तेमाल ही न कर पाए, ये अमानवीय भी हो सकता है। इस स्थिति में पेनल्टी भरकर निवेश को तोड़ने की छूट दी जानी चाहिए। ये ठीक है कि इससे बचत का एक हिस्सा बेकार चला जाता है, लेकिन कई बार इंसान की अपनी जरूरतें बाकी चीजों से आगे होती हैं। सिर्फ प्रॉविडेंट फंड ही नहीं, दूसरे साधनों में भी लॉक-इन की कड़ी पाबंदियों में ढील देनी चाहिए।